बुधवार, 30 अगस्त 2023

बर्दाश्त और सब्र करने की आदत बनाईये

इस्लामी जिन्दगी का एक पहलू एक दूसरे को बर्दाश्त करना भी है, कई मर्तबा ऐसा होता है कि हमें किसी की कोई बात ना गवार लगती है तो हमारा जी चाहता है कि हम अपनी ना गवारी का इजहार कर दें, 
याद रखिये! इस तरह मामलात सुधरते नही हैं बल्कि बिगड़ने की आशंका ज्यादा रहती है, सामने वाले ने एक बात कही, हम से सब्र और बर्दाश्त न हुआ तो हम ने एक कि दस सुना दी तो बात बढ़ कर झगड़े तक पहुंच जाती है, कुछ लोग तो ऐसे नादान होते हैं कि जिन का मिजाज़ माचिस की तिल्ली की तरह होता है कि जरा सी रगड़ पर भड़क उठते हैं, अगर सास बहु, नंन्द, देवरानी, जेठानी, मियां बीवी वगैरह एक दूसरे की बात बर्दाश्त करने की आदत बना लें तो ना खुशगवारी से बचा जा सकता है, किसी ने बे ख्याली से आपके पैर पर पैर रख दिया तो "अंधा है? दिखाई नही देता? जैसे अल्फाज़ बोल कर गुस्से का इज़हार करने के बजाये अल्लाह ताआला की रज़ा के लिए सब्र ओ बर्दाश्त का मुज़ाहिरा कर के सवाब ए आखिरत का हक़दार बना जा सकता है। 
अल्लाह ताआला का फरमान है: 
وَ الْكٰظِمِیْنَ الْغَیْظَ وَ الْعَافِیْنَ عَنِ النَّاسِؕ-وَ اللّٰهُ یُحِبُّ الْمُحْسِنِیْنَۚ(۱۳۴) )(پ۴،اٰلِ عمرٰن:۱۳۴)
तर्जुमा : और गुस्सा पीने वाले और लोगों से दर गुजर करने वाले और नेक लोग अल्लाह के महबूब हैं, 

बच्चों की अम्मी ने वक़्त पर खाना तैयार नही किया, कपड़े सही से प्रेस नही हुए तो भी बर्दाश्त कर के घरेलू जिन्दगी को तल्ख होने से बचाईये क्योंकि जिन घरों में बर्दाश्त कम होती है वहाँ से झगड़ों की आवाजें बुलंद हुआ करती हैं। 
माफी माँगना, माफ कर देना और बर्दाश्त और सब्र से काम ले कर दुनियावी और उखरवी फ़ायदे हासिल करना ही अक्लमंदी है, 

कहते हैं : एक आदमी की बीवी ने खाने में नमक ज्यादा डाल दिया, उसे गुस्सा तो बहुत आया मगर ये सोचते हुए गुस्सा पी गया कि मैं भी तो गलती करता रहता हूँ अगर आज मैंने बीवी की ग़लती पर सख्ती से गिरफ़्त की तो कहीं ऐसा न हो कि कल बा रोज़ कयामत अल्लाह ताआला भी मेरी गलतियों पर गिरफ्त फरमा ले, चुनांचे उसने दिल ही दिल में अपनी बीवी की गलती माफ कर दी, इंतकाल के बाद उसको किसी ने ख्वाब में देख कर पूछा : अल्लाह ताआला ने तुम्हारे साथ क्या मामला फरमाया? उसने ज़वाब दिया कि गुनाहों की कसरत के सबब अज़ाब होने ही वाला था कि अल्लाह ताआला ने फरमाया की मेरी बंदी ने सालन में नमक ज्यादा डाल दिया था 
और तुम ने उसकी ख़ता माफ कर दी थी जाओ मैं भी उसके सिले में तुम को आज माफ़ करता हूं। 

अगर हमारे मुआशरे का हर इंसान ये जेहन बना ले कि मैं सब्र और बर्दाश्त की आदत बनाऊँगा तो हमारा घर, मोहल्ला, शहर और मुल्क अमन का 
गहवारा बन जाएगा (इन शा अल्लाह ताआला)


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