शुक्रवार, 1 सितंबर 2023

کیا اعلیٰ حضرت اور اشرف علی تھانوں نے ایک ساتھ تعلیم حاصل کی؟

 کچھ انتشار پسند حضرات بغیر تحقیق کے بڑے زور و شور سے یہ پروپیگنڈہ پھیلاتے نہیں تھکتے کہ بریلویوں کے اعلیٰ حضرت اور اشرف علی تھانوی صاحب نے دیوبند کے ایک ہی مدرسے میں ایک ساتھ تعلیم حاصل کی اور دوران تعلیم کسی دینی مسئلہ میں ان دونوں کا اختلاف ہو گیا تو اعلیٰ حضرت اشرف علی تھانوی سے حسد کرنے لگے اور بریلی میں اعلیٰ حضرت نے اپنا الگ مدرسہ کھول کر ایک نئے فرقہ(بریلویت) کی بنیاد رکھی! اب قارئین کرام تحریر کو پڑھیں اور اس پروپیگنڈہ کی حقیقت دیکھیں کیا واقعی اعلیٰ حضرت اور اشرف علی تھانوی نے ایک ساتھ تعلیم حاصل کی؟ 
کیا اعلیٰ حضرت بریلوی اور اشرف علی تھانوی نے ایک ساتھ دیوبند میی پڑھا تھا ..؟؟؟
پیدائش اعلیٰ حضرت امام احمد رضا 10 شوال 1272ھ (حیات اعلیٰ حضرت) 
 اشرف علی تھانوی 5 ربیع الثانی 1280ھ( اشرف السوانح) تعلیم کا آغاز اعلیٰ حضرت امام احمد رضا ماہ صفر 1276ھ (حیات اعلیٰ حضرت) 
اشرف علی تھانوی ماہ ذیقعدہ 1295ھ (اشرف السوانح) تعلیم کی تکمیل اعلیٰ حضرت امام احمد رضا 14شعبان 1286ھ (حیات اعلیٰ حضرت اشرف) 
علی تھانوی 1301ھ( اشرف السوانح) 
نوٹ: امام احمد رضا محقق بریلوی 1286ھ میی تمام علوم عقلیہ و نقلیہ کے تکمیل کر کے مسند افتاءیپر فایز ہوچکے تھے تب اشرف علی تھانوی صرف 6 سال کے بچے تھے نیز تھانوی 1301ھ میی دارالعلوم دیوبند سے فارغ التحصیل ہوے تھے تب اعلیٰ حضرت کے علم کی  تکمیل کو 15 سال کا عرصہ گزر چکا تھا۔
 دارالعلوم دیوبند کا قیام 15محرالحرام1283ھ محلّہ چھتہ کی پرانی مسجد میی انار کے درخت کے نیچے صرف ایک استاد اور ایک شاگرد (تاریخ دارالعلوم دیوبند)
 تب امام احمد رضا بریلوی شریف میں اپنے مکان پر ایک جلیل القدر اساتزہ کرام سے اعلیٰ درجہ کی تعلیم کرنے کی آخری منزل میی تھے دارالعلوم دیوبند کی پہلی عمارت کا سنگ بنیاد 2 ذی الحجہ 1292ھ کو رکھا گیا اور آٹھ سال کی مدت میی یعنی 1300ھ میی نودرہ نامی پہلی عمارت کی تعمیر مکمل ہوی تاریخ دارالعلوم دیوبند تب امام احمد رضا کو بحشییت مفتی دینی خدمات انجام دینے کو 14 سال کا عرصہ گزر چکا تھا دارالعلوم دیوبند کے مطبخ mess کا آغاز دارالعلوم پڑھنے بیرونی طلبہ جو دارالاقامہ میی ٹھہرتے تھے ان کے کھانے پینے کا انتظام بصورت مطبخ 1328ھ میں کیا گیا (تاریخ دارالعلوم دیوبند) تب اعلیٰ حضرت مجدد اعظم کے شان سے پورے عالم اسلام کے محبوب نظر بن کر خورشید علم و عرفان کی حشییت سے درخشاں تھےاور علم کی تکمیل کو 42سال کا عرصہ گزر چکا تھا لہٰذا معزز قارین کرام کی خدمت میں مودبانہ عرض ہے کہ امام احمد رضا اور تھانوی دارالعلوم دیوبند میں ہم سبق اور ہم جماعت ہونے کے ساتھ ساتھ دارالاقمت میں ایک ساتھ رہتے تھے یہ ایک ایسا گھنونا جھوٹ ہے کہ تاریخ کو بھی مسخ کرنی کی کوشش کی جارہی ہے اپنے عقائد باطلہ پر اعلیٰ حضرت کی علم گرفت  کو ڈھیلی کرنے کی عرض سے دور حاضر کے منافقین عوام میں یہ جھوٹی کہانی رائج کر رہے ہیں  کہ اعلیٰ حضرت اور تھانوی دیوبند میں ایک ساتھ پڑھتے تھے رہتے تھے کھاتے تھے اور دوران طالب علمی ان دونوں میں جگڑا ہوا گیا لہٰذا اعلیٰ حضرت نے تھانوی اور دیگر اکابر علمائے دیوبند پر کافر کا فتویٰ صادر کردیا اور تعلیم ادھوری چھوڑ کر دیوبند سے بریلوی واپس چلے گے اور یہی اصلی وجہ سنی اور وہابی کے اختلاف کی ہے لیکن اگر خود دیوبندی مکتبہ فکر کی مستند کتابوں کا جائزہ لیا جائے تو تاریخ کی روشنی میں یہ حقیقت روز روشن کی طرح سامنے آے گی کہ تھانوی کا اعلیٰ حضرت کے ساتھ پڑھنا ایک غیر ممکن تصور ہی ہے کیونکہ جب امام احمد رضا تکمیل علوم دینیہ کے بعد ایک عظیم مفتی کی حشییت سے خدمت دین متین میں ہمہ تن مصروف تھے اس وقت تھانوی بلکل جاہل تھے اور جہالت کے اندھیرے میں بھٹکنے بعث ایسی ایسی حرکتیی کرتے تھے کہ وہ حرکتیی دیکھ کر ایک جاہل بلکہ فٹ پاٹھ کے موالی کا بھی سر شرم سے جھک جائے 
( 1) تھانوی نے اپنے والد کی چارپائی کے پائی رسی سے باندھ دیئے نتیجاً برسات میں چارپائیاں بھیگتی گئ (الافاضات الیومیہ) 
(2) تھانوی نے اپنے بھائی کے سر پر پیشاب کیا۔  (الافاضات الیومیہ)
( 3) مسجد کے نمازیوں کے جوتے تھانوی نے شامیانہ پر ڈال دے (الافاضات الیومیہ) 
(4) تھانوی نے اپنے سوتیلے ماموں کی دال کی رکابی میں کتے کا پلہ ڈال دیا۔( الافاضاتالیومیہ) 
کیا اب بھی یہ دعویٰ ہے کہ امام احمد رضا اور تھانوی نے ایک ساتھ پڑھا تھا  ہرگز نہیی ان دونوں کا ایک ساتھ پڑھنا ممکن ہی نہیں بلکہ ساتھ میں  پڑھنے کا سوال ہی پیدا نہیی ہوتا اختتام پر صرف اتنا عرض کرنا ہے۔

  نہ تم صدمے ہمیی دیتے نہ ہم فریاد یوں کرتے 
نہ کھلتے راز بستہ نہ یوں رسوائیاں ہوتی 

बुधवार, 30 अगस्त 2023

लड़कियां बाप की गरीबी बर्दाश्त करती हैं मगर शौहर की नही


बर्दाश्त और सब्र करने की आदत बनाईये

इस्लामी जिन्दगी का एक पहलू एक दूसरे को बर्दाश्त करना भी है, कई मर्तबा ऐसा होता है कि हमें किसी की कोई बात ना गवार लगती है तो हमारा जी चाहता है कि हम अपनी ना गवारी का इजहार कर दें, 
याद रखिये! इस तरह मामलात सुधरते नही हैं बल्कि बिगड़ने की आशंका ज्यादा रहती है, सामने वाले ने एक बात कही, हम से सब्र और बर्दाश्त न हुआ तो हम ने एक कि दस सुना दी तो बात बढ़ कर झगड़े तक पहुंच जाती है, कुछ लोग तो ऐसे नादान होते हैं कि जिन का मिजाज़ माचिस की तिल्ली की तरह होता है कि जरा सी रगड़ पर भड़क उठते हैं, अगर सास बहु, नंन्द, देवरानी, जेठानी, मियां बीवी वगैरह एक दूसरे की बात बर्दाश्त करने की आदत बना लें तो ना खुशगवारी से बचा जा सकता है, किसी ने बे ख्याली से आपके पैर पर पैर रख दिया तो "अंधा है? दिखाई नही देता? जैसे अल्फाज़ बोल कर गुस्से का इज़हार करने के बजाये अल्लाह ताआला की रज़ा के लिए सब्र ओ बर्दाश्त का मुज़ाहिरा कर के सवाब ए आखिरत का हक़दार बना जा सकता है। 
अल्लाह ताआला का फरमान है: 
وَ الْكٰظِمِیْنَ الْغَیْظَ وَ الْعَافِیْنَ عَنِ النَّاسِؕ-وَ اللّٰهُ یُحِبُّ الْمُحْسِنِیْنَۚ(۱۳۴) )(پ۴،اٰلِ عمرٰن:۱۳۴)
तर्जुमा : और गुस्सा पीने वाले और लोगों से दर गुजर करने वाले और नेक लोग अल्लाह के महबूब हैं, 

बच्चों की अम्मी ने वक़्त पर खाना तैयार नही किया, कपड़े सही से प्रेस नही हुए तो भी बर्दाश्त कर के घरेलू जिन्दगी को तल्ख होने से बचाईये क्योंकि जिन घरों में बर्दाश्त कम होती है वहाँ से झगड़ों की आवाजें बुलंद हुआ करती हैं। 
माफी माँगना, माफ कर देना और बर्दाश्त और सब्र से काम ले कर दुनियावी और उखरवी फ़ायदे हासिल करना ही अक्लमंदी है, 

कहते हैं : एक आदमी की बीवी ने खाने में नमक ज्यादा डाल दिया, उसे गुस्सा तो बहुत आया मगर ये सोचते हुए गुस्सा पी गया कि मैं भी तो गलती करता रहता हूँ अगर आज मैंने बीवी की ग़लती पर सख्ती से गिरफ़्त की तो कहीं ऐसा न हो कि कल बा रोज़ कयामत अल्लाह ताआला भी मेरी गलतियों पर गिरफ्त फरमा ले, चुनांचे उसने दिल ही दिल में अपनी बीवी की गलती माफ कर दी, इंतकाल के बाद उसको किसी ने ख्वाब में देख कर पूछा : अल्लाह ताआला ने तुम्हारे साथ क्या मामला फरमाया? उसने ज़वाब दिया कि गुनाहों की कसरत के सबब अज़ाब होने ही वाला था कि अल्लाह ताआला ने फरमाया की मेरी बंदी ने सालन में नमक ज्यादा डाल दिया था 
और तुम ने उसकी ख़ता माफ कर दी थी जाओ मैं भी उसके सिले में तुम को आज माफ़ करता हूं। 

अगर हमारे मुआशरे का हर इंसान ये जेहन बना ले कि मैं सब्र और बर्दाश्त की आदत बनाऊँगा तो हमारा घर, मोहल्ला, शहर और मुल्क अमन का 
गहवारा बन जाएगा (इन शा अल्लाह ताआला)


शनिवार, 19 अगस्त 2023

शादी के बाद पति पत्नी को एक दूसरे के प्रति कैसा होना चाहिए।


  • हर कोई यह चाहता है कि शादी के बाद वे एक अच्छी जिंदगी जीए। लेकिन यह तभी हो सकता है जब पति और पत्नी के बीच अच्छी समझ हो। बिना एक दूसरे को सही से जाने समझे शादी के रिश्ते को ठीक से निभाया नहीं जा सकता।जब एक कपल शादी के बंधन में बंध जाता है, तो उनकी आंखों में आने वाले कल के लिए कई सपने सजने लगते हैं। इन सपनों को पूरा करने और हर लम्हे को खुशी से जीने के लिए यह समझना जरूरी है कि वैवाहिक जीवन कैसा होना चाहिए। वैवाहिक जीवन का अर्थ क्या है और एक आदर्श शादीशुदा जिंदगी कैसी होनी चाहिए। शादी के बाद पति पत्नी को कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है जो निम्नलिखित हैं। 

विवाह क्या है? 
कानूनी और धार्मिक तरीके से महिला और पुरुष द्वारा साथ रहने की कसमें खाने के बाद संग बिताए जाने वाले समय को वैवाहिक जीवन कहा जाता है। जब इंसान किशोरावस्था से युवावस्था की तरफ बढ़ता है, तो उसे जीवन यापन के लिए एक साथी की आवश्यकता होती है, जिसके लिए विवाह का फैसला लिया जाता है। विवाह के बाद ही किसी भी महिला या पुरुष का वैवाहिक जीवन शुरू होता है।

(1) आपसी समझ : पति-पत्नी के रिश्ते में आपसी समझ होनी चाहिए। इसके लिए उन्हें एक दूसरे के व्यक्तित्व, पसंद, नापसंद जैसी सभी चीजों के बारे में समझना होगा। जब वो एक दूसरे को अच्छी तरह से समझने लगेंगे, तो रिश्ता मजबूत होता जाता है और दोनों प्यार से अपनी जिंदगी एक साथ बिताते हैं।

(2) विश्वास : किसी भी रिश्ते की बुनियाद विश्वास और भरोसे पर ही टिकी होती है। यही वजह है कि पति-पत्नी के रिश्ते में भी विश्वास का होना बेहद जरूरी है। पति और पत्नी दोनों अगर अपने रिश्ते को मजबूत और खूबसूरत बनाए रखना चाहते हैं, वो एक दूसरे पर अटूट विश्वास को बनाए रखें।

(3) अहंकार को कहें अलविदा : पति-पत्नी के बीच में अहंकार की जगह नहीं होनी चाहिए। अहंकार अच्छे-से-अच्छे रिश्ते को खराब कर देता है। अक्सर देखा गया है कि शादीशुदा कपल्स के बीच में अहंकार आ जाता है, जिस वजह से उनके रिश्ते में दरार पड़ने लगती है। ऐसे में रिश्ते के लिए अहंकार से दूरी बनाए रखना ही बेहतर होगा।

(4) संयम बरतना आना चाहिए : पति-पत्नी दोनों को संयम बरतना आना चाहिए। इससे रिश्ते में खटास पैदा होने की गुंजाइश खत्म हो जाएगी। कभी-कभी ऐसा होता है कि काम के प्रेशर की वजह से पति-पत्नी एक दूसरे पर अपना गुस्सा निकाल देते हैं। ऐसे में संयम बरतते हुए सामने वाले की परिस्थिति को समझें। इससे विवाद नहीं बढ़ेगा और रिश्ते की मिठास भी बनी रहेगी।

(5) प्यार और रोमांस से भरपूर : पति-पत्नी का रिश्ता प्यार और रोमांस से भरपूर होना चाहिए। इस रिश्ते में प्यार और रोमांस को जितनी जगह मिलेगी वह उतना ही मजबूत होगा। प्यार जीवन में सुख, शांति और खुशहाली लेकर आता है। इसी वजह से हर रिश्ते में प्यार का होना जरूरी है और पति-पत्नी के बीच तो विशेषकर।

(6) एक दूसरे का सम्मान : पति-पत्नी दोनों को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए। कई बार ऐसा होता है कि केवल पति ही पत्नी से सम्मान की इच्छा रखते हैं और पत्नी को सम्मान नहीं मिलता है। ऐसा करने से बचें। दरअसल, पति-पत्नी का रिश्ता तभी सफल कहलाता है, जब दोनों के मन में एक दूसरे के लिए बराबर सम्मान हो।

(7) दोनों के बीच अच्छा संवाद : खुशहाल वैवाहिक जीवन के लिए दो लोगों के बीच संवाद होते रहना चाहिए। इससे गलतफहमी से बचे रहने में मदद मिलती है। अगर पति और पत्नी दोनों के बीच संवाद में कमी आती है या फिर बातचीत बंद हो जाती है, तो यह अच्छे रिश्ते का संकेत नहीं है। इसी वजह से किसी भी परिस्थिति में दोनों को एक-दूसरे से अपने दिल की बात बेझिझक कहते रहनी चाहिए।

8. एक दूसरे को समय देना : वैवाहिक जीवन में कड़वाहट तब पैदा होती है जब पति-पत्नी एक दूसरे को समय देना बंद कर देते हैं। ऐसी कड़वाहट से बचने के लिए दोनों को एक दूसरे को समय देना चाहिए।

(9) भावनाओं का ख्याल रखना : पति-पत्नी के बीच अच्छे संबंध बनाए रखने के लिए एक-दूसरे की भावनाओं को समझना जरूरी है। कई बार ऐसा होता है कि किसी एक विषय पर पति-पत्नी के विचार मेल नहीं खाते। ऐसे में दोनों को एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए एक दूसरे का साथ देना चाहिए। इससे रिश्ता गहरा होता है और अनबन की आशंका कम हो जाती है।

(10) झूठ न बोलना : अच्छे-से-अच्छे रिश्ते की नींव को झूठ कमजोर कर देता है। इसी वजह से पति-पत्नी को कभी भी एक दूसरे से झूठ नहीं बोलना चाहिए। झूठ बोलने से रिश्ते में दरार पैदा हो सकती है। ऐसे में बेहतर होगा कि दोनों एक दूसरे से झूठ न बोलें और न ही कभी कुछ छिपाएं।

(11) विवाद सुलझाना : अपने रिश्ते को मजबूत बनाए रखने के लिए पति-पत्नी दोनों को विवाद सुलझाना आना चाहिए। अगर कभी पार्टनर का मूड खराब है या वो गुस्सा कर रहे हैं, तो समझदारी से काम लें। प्यार से पूछें कि क्या हुआ है या फिर कुछ देर के लिए उन्हें अकेले छोड़ दें। ऐसा करने से बात बढ़ेगी नहीं।

(12) एक दूसरे के परिवार का सम्मान : खुशहाल वैवाहिक जीवन जीने के लिए पति-पत्नी का एक दूसरे के परिवार वालों को भी सम्मान देना जरूरी है। ऐसा करने से दोनों के दिल में एक दूसरे के प्रति सम्मान की भावना बढ़ेगी और प्यार भी गहरा होता चला जाएगा।

(13) पुरानी बातों को भूल जाएं : कई बार पति-पत्नी के बीच अगर किसी बात को लेकर विवाद होता है, तो उस दौरान वो पुरानी बातें भी लेकर आ जाते हैं। इससे विवाद सुलझने के बजाए और बढ़ता चला जाता है। ऐसे में बेहतर होगा कि पति-पत्नी दोनों पुरानी बातों को भूल जाएं और उसके बारे में बार-बार बातें करके परिस्थिति को और खराब न करें।

(14) साथ मिलकर लें फैसला : पति-पत्नी के जीवन को खुशहाल बनाए रखने के लिए जरूरी है कि दोनों एक दूसरे की बातें सुनें और उसे अहमियत दें। कई बार ऐसा होता है कि घर के अधिकतर फैसले पुरुष ही ले लेते हैं और महिलाओं को इसका हक नहीं मिलता। ऐसा करने से बचें। पति-पत्नी दोनों को एक साथ मिलकर फैसला लेना चाहिए। इससे दोनों को एक दूसरे की राय पता चलेगी। साथ ही फैसले में सहमति भी मिलेगी।

(15) काम में हाथ बटाएं : आज के समय में महिलाओं और पुरुषों में कोई अंतर नहीं है। पति के साथ-साथ अब पत्नी भी ऑफिस जाती हैं। ऐसे में घर के कामों के लिए महिलाओं के पास ज्यादा समय नहीं बच पाता, जिस वजह से उनका मन चिड़चिड़ा होने लगता है। ऐसी स्थिति रिश्ते में दरार डाल सकती है, इसलिए बेहतर होगा कि दोनों साथ मिलकर घर के काम करें, ताकि किसी एक पर अधिक भार न पड़े।

(16) छोटी-छोटी बातों का रखें ध्यान : पति-पत्नी दोनों को एक दूसरे की हर छोटी-मोटी बातों का ध्यान रखना चाहिए। जैसे कि पार्टनर को खाने में क्या पसंद है, उसे कौन सी जगह घूमना अच्छा लगता है, उसके पसंदीदा रंग कौन-से हैं, आदि। इससे समय-समय पर उन्हें छोटे-छोटे सरप्राइज देने में मदद मिलती है और रिश्ते में प्यार बढ़ता है।


शनिवार, 8 जुलाई 2023

کتابوں اور مطالعہ سے دوری

کتابوں اور مطالعہ سے دوری

علم ایک ایسا خزانہ ہے جس کو چرایا نہیں جا سکتا اور اسے حاصل کرنے کا سب سے بہترین ذریعہ کتابوں کا مطالعہ کرنا ہے۔ مطالعہ ، ذہن کو کھولتا ہے نتائج سے باخبر کرتا ہے دانائی کی باتوں پر مطلع ہونے میں مدد دیتا ہے، فصیح اللسان بناتا ہے، غور و فکر کی صلاحیت بڑھاتا ہے علم کو پختہ کرتا ہے، اور شبہات ختم کرتا ہے، تنہا شخص کا غم دور کرتا ہے، غور و فکر کرنے والے کے لیے دلچسپی کا سامان ہے، اور مسافر کے لیے اندھیری رات کا چراغ ہے۔
موجودہ دور میں جیسے جیسے نوجوان دن بہ دن جدید ٹیکنالوجی سے قریب تر ہوتے جا رہے ہیں، کتب دوستی دم توڑتی جا رہی ہے۔کتابوں کی جگہ انٹرنیٹ اور ٹیلی ویژن معلومات کا فوری ذریعہ بن چکے ہیں۔،تفریح کے جدید ذرائع کی موجودگی میں کتب بینی صرف لائبریریوں یا چند اہل ذوق تک محدود ہو گئی ہے۔

حضرت امام حسن بصری رحمۃ اللہ تعالٰی علیہ فرماتے ہیں: 
مجھ پر چالیس سال اس حال میں گزرے ہیں کہ سوتے جاگتے کتاب میرے سینے پر رہتی ہے۔
(جامع بیان العلم وفضلہ ، ۲/۳۶۰ ، الرقم : ۲۳۳۶)

آج کے دور میں انٹرنیٹ اور سوشل میڈیا پر موجود تحریروں اور کتابوں سے استفادے کا رجحان بڑھتا جارہا ہے مگر انٹرنیٹ پر کمزور مواد پر مشتمل کتب اور مقالات کی بھی بھرمار ہے اور یہ غیر مستند مواد فوائد مطالعہ کا گلا گھونٹنے، جھوٹ پر سچ کا لیبل لگا کر جہالت کو فروغ دینے، افواہوں کو جنم دے کر حقائق کا چہرہ مسخ کرنے، دنیا میں بے چینی اور اضطراب و انتشار پھیلانے کا سبب بننے کے ساتھ ساتھ انسان کی گمراہی اور ایمان کی بربادی کاذریعہ بھی بن رہا ہے۔ لہٰذا انٹر نیٹ کے ذریعے مطالعہ کرنے والوں کو چاہئے کہ مذکورہ خرابیوں سے بچنے کے لئے مواد کی خوب چانچ پڑتال کرنے کی قابلیت پیدا کریں تاکہ اپنے علم کے ذخیرے کو غیر مستند معلومات کے شعلوں سے اور وقت جیسی قیمتی نعمت اور ایمان جیسی لازوال دولت کو ضائع ہونے سے بچایا جا سکے۔
✍️ عمران سیفی قادری 

बुधवार, 27 जुलाई 2022

تاریخ نویسوں کی مسلم مجاہدین آزاد کے ساتھ ناانصافی

 اتاریخ نویسوں کی مسلم مجاہدین آزادی کے ساتھ ناانصافی 

ملک ہندوستان آزادی کا 75 واں امرت مہوتسو منانے جا رہا ہے، 15 اگست 1947 کو ہندوستان انگریزوں کی غلامی سے آزاد ہوا اور دنیا کے جغرافیے میں ہندوستان کو اک آزاد ملک کے طور پر جگہ ملی، لیکن اسے آزاد کرانے کے لئے ہمارے مسلم اسلاف کو بھاری قیمت چکانی پڑی، بہت سے بزرگوں نے اسے آزاد کرانے کی خاطر اپنی جانیں قربان کر دیں، سینکڑوں بزرگ پھانسی کے پھندے پر جھول گئے، ہزاروں کو جیل کی کال کوٹھری میں محبوس کر دیا گیا اور تب جا کر یہ ملک آزاد ہوا۔ 

آزادی کی اس لڑائی میں مسلمان ہر طرح سے پیش پیش تھے لیکن ہماری عدم توجہی ہے یا یوں کہہ لیں کہ تاریخ نویسوں کی تنگ نظری نے ہمارے مجاہدین آزادی کو حاشیے پر دھکیل دیا، جو لوگ معتبر تاریخ داں سمجھے جاتے ہیں انہوں نے اکّا دکّا کہیں کہیں کسی فردِ واحد کا ذکر کیا ہے، لیکِن ان دو چند ناموں کے علاوہ اور بھی بہت سے ایسے نام ہیں جنہوں نے آزادی کے جدّ و جہد میں کارہائے نمایاں انجام دیے، اور بہتوں نے اپنی جان کی قربانی بھی دے دیں، ہماری یہ بد قسمتی ہے کہ نہ تو ہم تاریخ جاننا چاہتے ہیں اور نہ پڑھنا چاہتے ہیں،جن لوگوں کا آزادی میں رتّی برابر بھی رول نہیں تھا بلکہ ٹھیک اُس کے اُلٹ انہوں نے انگریزوں سے معافی مانگی ان کی غلامی قبول کی آج وہ تاریخ کے صفحات میں مجاہد گردانے جا رہے ہیں، اور جنہوں نے اس وطن کے لیے اپنی جان تک قربان کر دی، اپنی پوری زندگی دشمنوں سے لڑتے ہوئے گزار دی، قید و بند کی صعوبتوں کو برداشت کیا آج تاریخ کے صفحات کے حاشیے میں بھی اُن کا نام نہیں ہے۔


زندہ قومیں اپنی تاریخ فراموش نہیں کرتی، اپنے اجداد کے کارنامے انہیں یاد ہوتے ہیں، وہ ان کا مرثیہ نہیں پڑھتے، باضمیر لوگ ان سے سبق حاصل کرتے ہیں، اپنے اجداد کے کارناموں کو اپنی آنے والی نسلوں کے لیے محفوظ کرتے ہیں، ہمیں بھی یہی کرنا چاہیے، آج ہم میں سے کتنے ایسے لوگ ہیں جو اپنے بزرگوں کی قربانی سے واقفیت رکھتے ہیں، یا ان کے کارناموں کو جاننے میں دلچسپی ہے؟ بہت مشکل سے دو چار بزرگوں کے نام ہم جانتے ہیں، ضرورت اس بات کی ہے کہ ہم تاریخ پڑھیں، پڑھائیں، یاد رکھیں اور محفوظ کریں، ہمیں یاد رکھنا چاہیے کہ تاریخ نویسی اور تاریخ دانی کے لیے آسمان سے اب کوئی فرشتہ نہیں آئے گا، یہ کام مجھے کرنا ہوگا، آپ کو کرنا ہو گا، ہم سب کو کرنا ہوگا، اور یہی ان اکابرین کے لیے سچّا خراج عقیدت ہوگا۔

ہماری یہ بد قسمتی ہے کہ نہ تو ہم تاریخ جاننا چاہتے ہیں اور نہ پڑھنا چاہتے ہیں، جن لوگوں کا آزادی میں رتّی برابر بھی رول نہیں تھا بلکہ ٹھیک اُس کے اُلٹ انہوں نے انگریزوں سے معافی مانگی ان کی غلامی قبول کی آج وہ تاریخ کے صفحات میں مجاہد گردانے جا رہے ہیں، اور جنہوں نے اس وطن کے لیے اپنی جان تک قربان کر دی،اپنی پوری زندگی دشمنوں سے لڑتے ہوئے گزار دی،قید و بند کی صعوبتوں کو برداشت کیا آج تاریخ کے صفحات کے حاشیے میں بھی اُنکا نام نہیں ہے۔

عمران سیفی قادری 


बुधवार, 18 मई 2022


دنیا کی تمام قومیں مسلمانوں پر حملہ آور

قیامت کی وہ نشانیاں جو آخری زمانے میں ظاہر ہونے والی ہیں ان میں سے ایک یہ بھی ہے کی اقوامِ عالم ملتِ اسلامیہ پر ٹوٹ پڑیں گی۔


 *ثوبان رضی اللہ عنہ کہتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا:* 


"يُوشِكُ الْأُمَمُ أَنْ تَدَاعَى عَلَيْكُمْ كَمَا تَدَاعَى الْأَكَلَةُ إِلَى قَصْعَتِهَا،‏‏‏‏ فَقَالَ قَائِلٌ:‏‏‏‏ وَمِنْ قِلَّةٍ نَحْنُ يَوْمَئِذٍ ؟ قَالَ:‏‏‏‏ بَلْ أَنْتُمْ يَوْمَئِذٍ كَثِيرٌ وَلَكِنَّكُمْ غُثَاءٌ كَغُثَاءِ السَّيْلِ وَلَيَنْزَعَنَّ اللَّهُ مِنْ صُدُورِ عَدُوِّكُمُ الْمَهَابَةَ مِنْكُمْ وَلَيَقْذِفَنَّ اللَّهُ فِي قُلُوبِكُمُ الْوَهْنَ،‏‏‏‏ فَقَالَ قَائِلٌ:‏‏‏‏ يَا رَسُولَ اللَّهِ وَمَا الْوَهْنُ ؟ قَالَ:‏‏‏‏ حُبُّ الدُّنْيَا وَكَرَاهِيَةُ الْمَوْتِ".


”قریب ہے کہ دیگر قومیں تم پر ایسے ہی ٹوٹ پڑیں جیسے کھانے والے پیالوں پر ٹوٹ پڑتے ہیں“ تو ایک کہنے والے نے کہا: کیا ہم اس وقت تعداد میں کم ہوں گے؟ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ”نہیں، بلکہ تم اس وقت بہت ہوں گے، لیکن تم سیلاب کی جھاگ کے مانند ہو گے، اللہ تعالیٰ تمہارے دشمن کے سینوں سے تمہارا خوف نکال دے گا، اور تمہارے دلوں میں *وہن* ڈال دے گا“ تو ایک کہنے والے نے کہا: اللہ کے رسول! *وہن* کیا چیز ہے؟ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ”یہ دنیا کی محبت اور موت کا ڈر ہے“ (سنن ابو داؤد:4297، سلسلۃ الصحیحۃ:958) 


یہ حدیث رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کی نبوت کی صداقت کے دلائل اور علامات قیامت میں سے ہے۔ آج اقوامِ عالم امت اسلامیہ پر اس طرح حملہ آور ہو چکی ہیں جس طرح بھوکے کھانے کے برتن پر ٹوٹ پڑتے ہیں۔ اس ذلت و رسوائی کا سبب مسلمانوں کی قلت نہیں۔ وہ کثرت میں ہیں مگر اس کے باوجود گھاس پھونس سے زیادہ حیثیت نہیں رکھتے۔ وہ اس جھاگ کی طرح ہیں جو سیلاب کے پانی کے اوپر آجاتی ہے اور اس کا کوئی وزن نہیں ہوتا۔ آج امتِ مسلمہ کا یہی حال ہے۔ ان کی تعداد آج ایک ہزار ملین (ایک ارب) سے زیادہ ہے مگر ان کی یہ کثرت کمیت کے اعتبار سے ضرور ہے مگر کیفیت کے اعتبار سے ہرگز نہیں۔

آج دشمنوں کے دلوں سے مسلمانوں کا رعب نکل چکا ہے اور وہ اہل اسلام کو بے وقعت سمجھ کر ان کے خلاف جنگیں برپا کرتے اور ان پر حملے کرتے ہیں۔ یہ سب کچھ ایک ایسے وقت پر ہو رہا ہے جب مسلمانوں کے دلوں میں *وہن* ڈال دیا گیا ہے، یعنی وہ دنیا سے محبت اور موت کے خوف میں مبتلا ہیں۔

کیا اعلیٰ حضرت اور اشرف علی تھانوں نے ایک ساتھ تعلیم حاصل کی؟

 کچھ انتشار پسند حضرات بغیر تحقیق کے بڑے زور و شور سے یہ پروپیگنڈہ پھیلاتے نہیں تھکتے کہ بریلویوں کے اعلیٰ حضرت اور اشرف علی تھانوی صاحب نے ...